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हाउसिंग घोटाले मामले में विजिलेंस के रडार पर जालंधर के तीन पूर्व पार्षद

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जालंधर नगर निगम को अब तक करोड़ों रुपए की ग्रांट मिल चुकी है और यह योजना निगम में पिछले 10 सालों से चल रही है, जिसका लाभ हजारों लोगों को मिल चुका है। लेकिन फिर इस योजना में एक बड़ा घोटाला हुआ, जिसके तहत ग्रांट राशि ऐसे परिवार को जारी कर दी गई, जो इस ग्रांट के लिए पात्र नहीं थे।

अब आरोप है कि ऐसे परिवारों को ग्रांट जारी करने के एवज में पैसे भी लिए गए और कई मामलों में तो सेल्फ चेक लेकर भी ये पैसे लिए गए. खास बात यह है कि जालंधर निगम में प्रधानमंत्री आवास योजना से जुड़े घोटाले की जांच इन दिनों विजिलेंस कर रही है और घोटाले से जुड़ा काफी रिकॉर्ड विजिलेंस के पास पहुंच चुका है। आने वाले दिनों में वे लोग भी सामने आ सकते हैं, जिन्होंने ग्रांट पाने के बदले कुछ बिचौलियों को पैसे दिये थे।

जालंधर निगम में हाउसिंग घोटाले को लेकर 3 पूर्व पार्षदों पर उंगलियां उठ रही हैं। विभाग के कर्मचारियों का यह भी कहना है कि कांग्रेस के पिछले 5 साल के कार्यकाल के दौरान ये तीनों कौंसल विभाग के कमरे में मौजूद रहते थे और अक्सर फाइलों से छेड़छाड़ करते थे। इन तीनों पूर्व पार्षदों की सेटिंग आवास योजना से जुड़े मैदानी अमले से थी.

खास बात यह है कि ये तीनों पार्षद न सिर्फ युवा हैं बल्कि नये भी हैं और पहली बार सदन में कदम रखा है. ये सभी अपने-अपने वार्डों में काफी सक्रिय थे और खास बात यह है कि तीनों पार्षदों के वार्डों में स्लम एरिया ज्यादा थे, इसलिए आवास योजना के तहत सबसे ज्यादा मामले तीनों पार्षदों के वार्डों में हुए।

अब अगर इस मामले की विजिलेंस द्वारा विस्तृत जांच हो (जो शुरू भी हो चुकी है) तो वैज्ञानिक तरीके से यह पता लगाना संभव हो जायेगा कि पूर्व पार्षद ने सेल्फ चेक के जरिये कब और कितनी रिश्वत ली है। पता चला है कि कुछ मामलों में अनुदान की पूरी राशि का चेक देने के बदले सेल्फ चेक के तौर पर 50 हजार रुपये की रिश्वत भी ली गयी। खास बात यह है कि इस घोटाले में जालंधर निगम के तीन पूर्व पार्षदों पर शामिल होने का आरोप लग रहा है। अब तीनों ने पार्टियां बदल ली हैं।

जालंधर निगम में प्रधानमंत्री आवास योजना घोटाले में संबंधित शाखा के कर्मचारियों की भूमिका भी सामने आ रही है, जिन्होंने ऐसे लोगों को अनुदान जारी किया जो इसके लिए पात्र नहीं थे। अब निगम प्रशासन के सामने समस्या खड़ी हो गई है कि इस शाखा से संबंधित अधिकतर कर्मचारी कंपनी के माध्यम से आउटसोर्स आधार पर तैनात हैं और सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और कच्चे आधार पर काम कर रहे हैं।

 

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